Bihar Board 12th Economics Model Set-4 2023: आप भी बिहार बोर्ड की तरफ से 2024 में एग्जाम देने वाले हैं तो आपके लिए खुशखबरी आ गया है आप सभी के लिए महत्वपूर्ण Model Set-2 Economics Questions Answer, New Link, BSEB EXAM

Bihar Board 12th Economics Model Set-4 2023

Bihar Board 12th Economics Model Set-4 2023: आप भी बिहार बोर्ड की तरफ से 2024 में एग्जाम देने वाले हैं तो आपके लिए खुशखबरी आ गया है आप सभी के लिए महत्वपूर्ण Model Set-2 Economics Questions Answer, New Link, BSEB EXAM

Bihar Board 12th Economics Model Set-4 2023:

खण्ड-स (दीर्घ उत्तरीय प्रश्न )

प्रश्न 1. चालू खाते और पूँजीगत खाते के संघटकों को समझाइए |
उत्तर-भुगतान सन्तुलन विवरण को दो भागों में बाँटा जाता है- (a) चालू खाता (Current Account) भुगतान शेष का चालू खाता -अल्पकालीन वास्तविक सौदों को दर्शाता है । इसमें दृश्य और अदृश्य Visible and Invisible) दोनों प्रकार की मदं सम्मिलित की जाती हैं। दृश्य मदों में वस्तुओं के आयात और निर्यात आते हैं जबकि अदृश्य मदों में सेवाएँ, बँकिंग, जहाजरानी, ऋण सेवाएँ आदि के आयात-निर्यात को सम्मिलित किया जाता है।

चालू खाते में निम्नलिखित मदें सम्मिलित हैं : (i) दृश्य वस्तुओं का निर्यात व आयात-दृश्य वस्तुओं का आयात व निर्यात चालू खाते की सबसे बड़ी मद है। निर्यात को लेनदारी पक्ष और आयात को देनदारी पक्ष में रखा जाता है। (ii) अदृश्य मदें इसमें व्यापार, शिक्षा, स्वास्थ्य, व्यापारिक, प्रतिनिधि

मण्डलों के सदस्य तथा मनोरंजन आदि के लिए आने वाले पर्यटकों द्वारा किया गया व्यय शामिल है । यह निर्यात के समान है। देश के लोगों द्वारा विदेशों में किए गये खर्चे देश के लिए आयात के समान हैं । (iii) व्यापारिक उपक्रमों की सेवाएँ इनमें परिवहन, बैंकिंग, बीमा, विशेषज्ञों की सेवाएँ, निवेश आय, सरकारी लेन-देन, दूतावासों पर व्यय, दान व उपहार, कमीशन, किराया, रायल्टी आदि को सम्मिलित किया जाता है।

(b) पूँजी खाता (Capital Account)- भुगतान सन्तुलन का पूँजी खाना वित्तीय लेन-देनों से संबंधित होता है। इसमें सभी प्रकार के अल्पकालीन और दीर्घकालीन पूँजी अन्तरणों को शामिल किया जाता है। इसकी मुख्य मदें निम्नलिखित हैं-निजी ऋण, सरकार पूँजी का लेन-देन, बैंकिंग पूँजी का प्रवाह ऋण ऋणों का भुगतान, केन्द्रीय बैंक के स्वर्ण भंडार, सरकार के SDR कोष, अन्तर्राष्ट्रीय कोष से कब तथा इसी प्रकार के दूसरे पूँजीगत लेन-देन सम्मिलित हैं ।
अथवा
किसी वस्तु की बाजार पूर्ति पर प्रभाव डालने वाले कारक समझाइए ।
उत्तर पूर्ति को प्रभावित करने वाले विभिन्न तत्त्व निम्नलिखित हैं 1. वस्तु की करत (Price of Commodity)-वस्तु की कीमत जितनी अधिक होगी, उत्पादक उतनी ही अधिक मात्रा में पूर्ति करेंगे। इसके विपरीत कम कीमत पर वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी।
2. सभी अन्य वस्तुओं की कीमतें (Prices of other goods)- यदि किसी अन्य वस्तु की कीमत बढ़ती है तो उसका उत्पादन अधिक लाभप्रद माना जाएगा । जिस वस्तु की कीमत नहीं बढ़ी है उसका उत्पादन कम आकर्षक माना जाएगा। इस प्रकार उस वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी जिसकी कीमत गिरी है तथा जिस वस्तु की कीमत में वृद्धि हुई है, उसकी पूर्ति बढ़ जाएगी।
३. उत्पादन के साधनों की कीमतें (Prices of factors of production)- यदि उत्पादन के साधनों की कीमत में वृद्धि होती है तो वस्तु
की उत्पादन लागत बढ़ जाएगी। इस स्थिति में उत्पादक अपने साधनों को किसी अन्य ऐसी वस्तु के उत्पादा में लगाएँगे जिनकी उत्पादन लागत कम हो । इसके फलस्वरूप वस्तु की पूर्ति कम हो जाएगी ।
4. तकनीकी ज्ञान का स्सना (Level of technical knowledge) –नए अनुसंधनों तथा खोजों से उत्पादन की विधियों में सुधार होता है, जिससे वस्तु की पूर्ति बढ़ जाती है। इसके अतिरिक्त नई तकनीक के कारण उत्पादन की लागत में भी कमी आती है, जिससे फर्म के लाभ बढ़ते हैं और में भी वृद्धि होती है । वस्तु की पूर्ति में भी वृद्धि होती है!
5. प्राकृतिक कारक (Natural Factors) – साधारणतः कृषि वस्तुओं की पूर्ति जलवायु, भूमि की उपजात शक्ति तथा वर्षा पर निर्भर करती है । 6. फर्म का उद्देश्य (Goalof Firm) – अधिकतम लाभ कमाने के अतिरिक्त फर्म का उद्देश्य बिक्री को अधिकतम बनाना या अधिकतम रोजगार प्रदान करना या बाजार के अधिकतम भाग को हथियाना आदि हो सकता है। उत्पादक के उद्देश्यों में परिवर्तन का अनुकूल या प्रतिकूल प्रभाव वस्तु की पूर्ति पर पड़ सकता है
7. अन्य कारण (Other Factors) – यातायात तथा संचार के साधन, सरकार की कर नीति, भविष्य में कीमत वृद्धि की आशा आदि कारकों का भी वस्तु की पूर्ति पर प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न 2. माँग चक्र में शिफ्ट का कीमत पर अधिक तथा मात्रा पर कम प्रभाव होता है, जबकि फर्मों की संख्या स्थिर रहती है। स्थितियों । की तुलना करें जब निर्वाध प्रवेश तथा बहिर्गमन की अनुमति हो । व्याख्या करें।
उत्तर माँग वक्र में खिसकाव होने पर कीमत में परिवर्तन होता है। मान लीजिए माँग वक्र दाई ओर खिसकता है। इस स्थिति में कीमत में अधिक वृद्धि होगी परन्तु मात्रा पर कम प्रभाव पड़ेगा जैसा कि चित्र में दिखाया गया है :
इसका मुख्य कारण फर्मों की संख्या का निश्चित होना है। नई फर्मों के प्रवेश करने पर प्रतिबन्ध है । वर्तमान फर्मे उत्पादन में अधिक वृद्धि नहीं कर सकेंगी। माँग में वृद्धि होने पर कीमत में अधिक वृद्धि होगी और मात्रा में कम वृद्धि होगी । इसके विपरीत माँग वक्र के दाई ओर खिसकने पर कीमत में वृद्धि होगी कीमत में वृद्धि होने (अर्थात् लाभ में वृद्धि होने पर उद्योग में नई फर्मों का प्रवेश होगा। नई फर्मों के प्रवेश से पूर्ति में वृद्धि होगी। उद्योग में नई फर्मों का तब तक प्रवेश होता रहेगा जब तक कीमत कम होकर साम्य कीमत के बराबर नहीं हो जाती। अतः उस बाजार में जहाँ पर फर्मों के प्रवेश तथा बहिर्गमन की स्वतंत्रता है वहाँ मांग वक्र के वई ओर खिसकने पर कीमत पर कम प्रभाव पड़ेगा और मात्रा पर अधिक ।
अथवा
उत्पादन विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय आप क्या सावधानियां बरतेंगे ?
उत्तर- सावधानियाँ (Precautions) उत्पादन विधि द्वारा राष्ट्रीय आय की गणना करते समय हम निम्नलिखित सावधानियाँ बरतेंगे:
1. उपभोग के लिए किया गया उत्पादन का बाजार मूल्य राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए ।
2. खुद काबिज मकानों का आरोपित किराया राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए।
3. पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय का शामिल नहीं करना चाहिए ।
4. पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय पर दलालों कमीशन एजेंटों द्वारा प्राप्त दलाली कमीशन को राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए ।
5. उद्यमी, सरकार और परिवारों द्वारा अवल पूँजी का स्व लेखा उत्पादन राष्ट्रीय आय में शामिल किया जाना चाहिए ।
6. घरेलू सेवाओं को राष्ट्रीय आय में शामिल नहीं किया जाना चाहिए।

 

प्रश्न 3. रिजर्व बैंक द्वारा साख नियन्त्रण के लिए अपनाई गई परिमाणात्मक विधियों के नाम लिखें। उनमें से किसी एक विधि का वर्णन करें।
उत्तर- परिमाणात्मक विधिय (Quantitative Methods )- परिमाणात्मक विधियों से अभिप्राय उन विधियों से है जिसके द्वारा साख की मात्रा पर नियन्त्रण रखा जाता है । इसका प्रभाव देश में उपलब्ध कुल साख की मात्रा पर पड़ता है । प्रमुख परिमापत्मक विधियाँ हैं— (1) बैंक दर, (2) खुले बाजार की कार्यवाहियाँ, (3) कद कोषानुपात में परिवर्तन तथा (4) वैधानिक तरलता अनुपात में परिवर्तन।
वैधानिक तरलता अनुपात में परिवर्तन (Change in Statutory Liquidity Ratio)– व्यापारिक बैंकों को अपनी कुल सम्पत्ति का एक निश्चित प्रतिशत तरल रूप में या अनुमोदित (Approved) प्रतिभूतियों के रूप में रखना पड़ता है । इस अनुपात को वैधानिक तरलता अनुपात कहते हैं। रिजर्व बैंक इस अनुपात में परिवर्तन करके साख नियन्त्रण कर सकता है। यदि साख मुद्रा का प्रसार करना होता है तो इस अनुपात को कम कर दिया जाता है ताकि बैंकों के पास तरल कोषों की वृद्धि हो सके तथा अधिक मात्रा में निर्माण कर सके। यदि साख का संकुचन करना होता है तो इस अनुपात को बढ़ा दिया जाता है ताकि बैंकों के पास तरल कोष कम उपलब्ध हो तथा वह कम मात्रा में साख का निर्माण कर सकें ।
अथवा
योजना व्यय से आप क्या समझते हैं ? योजना पूंजी व्यय की विभिन्न मर्दे बताइए ।
उत्तर – योजना व्यय (Plan expenditure)- इसमें विभिन्न परियोजनाओं और कार्यक्रमों तथा राज्यों की विभिन्न योजनाओं के लिए केन्द्रीय सहायता का वर्णन होता है। इसे राजस्व व्यय और पूँजी व्यय में विभाजित किया जाता है। योजना राजस्व व्यय (Plan Revenue Expenditure)- इसमें निम्नलिखित को शामिल किया जाता है-
कृषि, ग्रामीण विकास, सिंचाई, बाद-नियंत्रण, ऊर्जा, खनिज, परिवहन, संचार, विज्ञान, पर्यावरण, सामाजिक सेवाएँ और प्रौद्योगिकी पर व्यय तथा राज्य और संघशासित क्षेत्र के आयोजन के लिए केन्द्रीय सहायता के व्यय
सम्मिलित हैं। योजना पूंजी व्यय (Plan Capital Expenditure)- इसमें आर्थिक विकास, सामाजिक और सामुदायिक विकास, रक्षा और सामान्य सेवाओं पर पूँजी व्यय शामिल हैं। राज्यों को दिए जाने वाले ऋण भी इसमें ही सम्मिलित किए जाते हैं

प्रश्न 4. स्थिर विनिमय दर प्रणाली तथा लोचशील विनिमय दर प्रणाली समझाएँ ।
उत्तर-विनिमय दर की कई प्रणालियों हैं। इनमें दो मुख्य हैं (1) स्थिर विनिमय दर प्रणाली तथा (2) लोचशील विनिमय दर प्रणाली ।
1. स्थिर विनिमय दर प्रणाली (Fixed Exchange Rate System) इस प्रणाली के अन्तर्गत विनिमय दर का निर्धारण सरकार के द्वारा किया जाता है । यह दर प्रायः स्थिर ही रहती है। यदि इसमें कोई परिवर्तन किया जाता है तो वह एक सीमा के अन्तर्गत । इसके अन्तर्गत प्रत्येक देश अपनी मुद्रा का मूल्य सोने में घोषित करता है। मान लीजिए कि भारत अपने रुपये का मूल्य 1 ग्राम में करता है और अमेरिका अपने डालर का मूल्य 5 ग्राम में करता है। ऐसी अवस्था में एक डालर का मूल्य 5 रुपये होगा । स्थिर विनिमय प्रणाली के लाभ हैं :
1. स्थिर विनिमय दर प्रणाली इस बात का आश्वासन देती है कि बड़ी-बड़ी आर्थिक विपदाएँ आर्थिक नीतियों को प्रभावित नहीं करेंगी ।
2. स्थिर विनिमय दर प्रणाली विश्व व्यापार के विस्तार में अधिक सहायक होती है क्योंकि यह लेन-देन की अनिश्चितता और जोखिम को रोकती है ।
3. स्थिर विनिमय दर विश्व अर्थव्यवस्था में देशों की समष्टि नीतियों में समन्वय लाती है।
2. परिवर्तनशील या लोचशील विनिमय दर प्रणाली (Flexible Exchange Rate System) – परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली में विनिमय दर का निर्धारण माँग तथा पूर्ति शक्तियों द्वारा होता है। इस प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय बैंकों का कोई हस्तक्षेप नहीं होता । परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली से निम्न लाभ प्राप्त होते हैं :
1. परिवर्तनशील विनिमय दर प्रणाली के अन्तर्गत केन्द्रीय बैंकों को अन्तर्राष्ट्रीय रिजर्व नहीं रखने पड़ते ।
2. परिवर्तनशील विनिमय दर पूँजी प्रवाह तथा व्यापार में आने वाली बाध ओं को रोकने में सहायक होती है।
3. संसाधनों के अनुकूलतम आवंटन के माध्यम से लोचशील विनिमय दर
अर्थव्यवस्था में कुशलता लाती है ।
अथवा
व्यावसायिक बैंक के प्रमुख कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर- सामान्य बैंकिंग कार्य करनेवाले बैंकों को व्यावसायिक बैंक कहा जाता है । इन बैंकों का मुख्य उद्देश्य व्यापारिक संस्थाओं की वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति करना है। व्यावसायिक बैंक घन जमा करने ऋण देने चैकों, का संग्रह एवं भुगतान करने तथा एजेन्सी संबंधी अनेक काम करते हैं ।
भारतीय बैंकिंग नियमन अधिनियम के अनुसार “बैंकिंग से तात्पर्य ऋण देने अथवा विनियोजन के लिए जनता से धन जमा करना है जो माँग करने पर लौटाया जा सकता है। तथा चैक ड्राफ्ट अथवा अन्य प्रकार की आज्ञा द्वारा निकाला जा सकता है ।”
इन बैंकों का मुख्य उद्देश्य लाभ अर्जन है, व्यावसायिक बैंक के कार्य-: (1) जमा स्वीकार करना- व्यापारिक बैंकों का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य जमा स्वीकार करना है। जमा के तीन रूप हो सकते हैं |
(i) बचत खाता- बैंक जमा की निष्क्रिय निधियों को जमा करने का सुरक्षित भंडार माना जाता है। इस खाते में जमा राशि पर सामान्य दर से ब्याज प्राप्त होता है।
(ii) चालू खाता इसे माँग जमा के नाम से संबोधित किया जाता है । उसमें से जमाकर्ता किसी भी समय राशि निकाल सकता है। बैंक इस खाते पर कोई ब्याज भुगतान नहीं करता बल्कि ग्राहक से सेवा शुल्क वसूल कर लेता हैं ।
(iii) स्थायी जमा खाता इस खाते से समय से पूर्व राशि को नहीं निकाला जा सकता । इन जमाओं पर बैंक ऊँची ब्याज दर देता है ।
(2) ऋण प्रदान करना – बैंक का दूसरा महत्त्वपूर्ण कार्य ऋण प्रदान करना है। व्यापारिक बैंक जमाकर्ताओं और ऋणियों के बीच मध्यस्तता का कार्य करता है । तथा इन सौदों के बदले में लाभ कमाता है ।
3. साख निर्माण वर्तमान समय में साख निर्माण व्यापारिक बैंकों का प्रमुख कार्य बन गया है।
4. अय कार्य आधुनिक समय में वाणिज्यिक बैंक निरन्तर अपनी बैंकिंग सेवाओं में वृद्धि कर रहे हैं। बैंकों द्वारा किये जानेवालों अन्य कार्य निम्नलिखित हैं।
(i) कोषों का अन्तरण- वाणिज्यिक बैंक साख पत्रों, चेक, ड्राफ्ट, विनिमय बिल आदि की सहायता से कोषों का अंतरण संभव बनाते हैं । (ii) एजेन्सी कार्य – व्यापारिक बैंक अपने ग्राहकों के लिए वित्तीय एजेन्ट से विभिन्न दावों का
की भूमिका निभाते हैं। बैंक अपने ग्राहकों की ओर भुगतान प्राप्त करते हैं और भुगतान प्रदान करते हैं।

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