Bihar Board 10th 12th Geography Top-5 Question 2024: आप भी बिहार बोर्ड की तरफ से 2024 में एग्जाम देने वाले हैं तो आपके लिए खुशखबरी आ गया है आप सभी के लिए महत्वपूर्ण Geography Questions Answer, New Link, BSEB EXAM

Bihar Board 10th 12th Geography Top-5 Question 2024

Bihar Board 10th 12th Geography Top-5 Question 2024: आप भी बिहार बोर्ड की तरफ से 2024 में एग्जाम देने वाले हैं तो आपके लिए खुशखबरी आ गया है आप सभी के लिए महत्वपूर्ण Geography Questions Answer, New Link, BSEB EXAM

Bihar Board 10th 12th Geography Top-5 Question 2024:

 

Q.1. धन के निष्कासन सिद्धांत पर प्रकाश डालें। V. V. I.
Ans. भारत से धन निर्गमन का सिद्धांत प्राचीन काल से अंग्रेजों के आगमन से पूर्व : तक जितने भी विदेशी आक्रमणकारी भारत आये, वे भारत में ही बस गये। उन्होंने यहाँ कृषि एवं हस्तशिल्प को प्रोत्साहित किया। मुगल शासक कशीदाकारी एवं हस्तशिल्प के शौकीन थे। अतः ऊँची कीमत पर हस्तशिल्प को दरबारी सज्जा हेतु खरीदते थे। अधिक कीमत व तारीफ पाने की प्रतिस्पर्द्धा में हस्तशिल्पियों में सुन्दर से सुन्दर वस्तुएँ निर्मित करने की प्रतिस्पर्द्धा रहती थी। इससे हस्तशिल्प उद्योग अत्यधिक उन्नति करने लगा। यहाँ की निर्मित वस्तुएँ समस्त विश्व के देशों में निर्यात की जाने लगी। समस्त विश्व का सोना-चाँदी भारत में आकर एकत्रित होने लगा। भारत आने वाले प्रायः अधिकांश विदेशी यात्रियों ने भारत की समृद्धि को रेखांकित किया है।
विदेशी यात्री प्लीनी (कुषाण काल), अब्दुर्रज्जाक (1441-42 ई ), इब्नबतूता (1342). बर्नियर् (1657) एवं जोवान्नी करेरी (1690 ई.) आदि सभी ने इस बात का उल्लेख किया है कि समस्त देशों का सोना-चादी भारतीय हस्तशिल्प के निर्यात के कारण भारत में एकत्रित हो गयी है। सम्भवत: इसीलिये भारत को सोने की चिड़िया कहा गया। अंग्रेज भारत में ऐसे पहले विदेशी आक्रांत थे जिन्होंने भारत को कभी अपना नहीं माना।
इन्होने भारत से कमाकर खर्च इंग्लैण्ड में किया। इससे भारत की धन-सम्पदा का निर्गमन ब्रिटेन की ओर होने लगा। जान सुलीवन ने ठीक ही कहा है-

“भारतीय अर्थव्यवस्था अंग्रेजों के अधीन एवं स्पंज की तरह कार्य कर रही है जो भारत की गंगा नदी से सारा धन रूपी पानी सोख कर इंग्लैण्ड की टेम्स नदी में निचोड़ देती है।” इस प्रकार अंग्रेजों ने भारतीय धन का दोहन किया। कुशासन के आरोप में अवध को हड़प लिया। ऐसे ही कई राज्य हड़पे गये। इससे दरबारी नवाबों का पतन हुआ। दरबार में आने वाला हस्तशिल्प भी पतन की ओर अग्रसर हुआ। पहले हस्तशिल्पियों को कृषक बनने हेतु बाध्य किया। कृषकों से नकदी फसलें पैदा करायी। इससे वे कर्ज के मायाजाल में उलझ गये और अपनी कृषि छोड़कर मजदूर बनने के लिये बाध्य हुये। इस प्रकार भारत में व्यपार एवं हस्तशिल्प का पतन हुआ। भारतीय धन-सम्पदा का बहाव इंग्लैण्ड की ओर हो गया। सोने की चिड़िया को अंग्रेज पिंजरे में कैद कर ब्रिटेन ले गये अर्थात् धन का निर्गमन ब्रिटेन की ओर हुआ।

Q.2. वक्सर युद्ध के कारण, महत्व एवं परिणामों का परीक्षण करें। V.V.I..
Ans. बक्सर के युद्ध के कारण (Causes) :
1. मीरकासिम एक योग्य और कुशल शासक था। वह अपने को कम्पनी के हस्तक्षेप से
बचाना चाहता था। कम्पनी के अधिकारी समझने लगे कि नवाब व्यावहारिक रूप में शासन-सूत्र अपने हाथ में लेना चाहता है परन्तु वे नहीं चाहते थे कि नवाब किसी तरह शासन पर अपना प्रभाव कायम करे। यह था कि कम्पनी के कर्मचारी मुगल सम्राट से प्राप्त निःशुल्क व्यापार करने के शाही फरमान का दुरूपयोग कर रहे थे। इससे नवाब को आर्थिक क्षति पहुँच रही थी।
2. शाही फरमान का दुरूपयोग कम्पनी और नवाब में संघर्ष का दूसरा प्रमुख कारण
3. मीरकासिम की कार्रवाई : इस स्थिति में सुधार लाने के लिए मीरकासिम ने कम्पनी के साथ समझौता करने का प्रयत्न किया, परन्तु कोई फल नहीं निकला। अंग्रेज अफसर एलिस ने
पटना पर आक्रमण कर दिया। तब मीरकासिम ने क्रोध में आकर पटना में रहने वाले अंग्रजों का
वध करवा दिया। उसने कासीम बाजार पर अधिकार कर लिया परन्तु अन्त में वह अंग्रेजों से हार कर अवध भाग गया।
युद्ध की ‘प्रमुख घटनाएँ: आत्म रक्षा का कोई उपाय नही देखकर मीरकासिम ने पटना से भागकर अवध के नवाब वजीर शुजाउद्दौला के यहाँ शरण ली। उस समय नवाब वजीर के साथ मुगल सम्राट शाहआलम भी था। मीरकासिम ने दोनों ही से सहायता की प्रार्थना की। इधर तीस वर्षो से अवध के नवाब बंगाल को ललचायी दृष्टि से देख रहे थे। अत: अंग्रेजों के विरुद्ध मुगल सम्राट शाहआलम, अवध का नवाब वजीर शुजाउद्दौला तथा मीरकासिम ने संयुक्त मोर्चा कायम किया। तीनो की संयुक्त वाहिनी और अंग्रेजों की सेना ने 1764 ई. के अक्टूबर माह में बक्सर में युद्ध प्रारम्भ हुआ। 22 अक्टूबर, 1764 ई0 को मीरकासिम और उसके मित्रों की जबरदस्त पराजय हुई। शुजाउद्दौला रोहिलखण्ड भाग गया। मीरकासिम भी रणक्षेत्र से भाग गया और 12 वर्षों तक इधर-उधर भटकता रहा। अन्त में सन् 1777 ई. में दिल्ली के निकट अत्यन्त दयनीय दशा में उसकी मृत्यु हो गयी। इस प्रकार भारत के भाग्य निर्णायक प्रसिद्ध बक्स युद्ध का अन्त हुआ।

परिणाम (Effects) : बक्सर की लड़ाई के परिणामस्वरूप अंग्रेजों ने अवध के नवाब शुजाउद्दौला तथा मुगल सम्राट शाहआलम के साथ एक संधि कर ली जो इलाहाबाद की संधि (Treaty of Allahabad) के नाम से विख्यात है।
युद्ध महत्व (Significance) : भारत में ब्रिटिश साम्राज्य की स्थापना की दृष्टि से बक्सर के की विजय का विशिष्ट महत्व है। इस विजय के फलस्वरूप केवल मीरकासिम ही पराजित नहीं हुआ वरन् अवध के नवाब, वजीर तथा भारत के मुगल सम्राट शाह आलम भी पराजित हुए। इस प्रकार यह सम्पूर्ण उत्तरी भारत की पराजय थी। मुगल सम्राट से अंग्रेजों को बंगाल, बिहार, उड़ीसा की दीवानी प्राप्त हुई जिससे विधानतः एवं व्यवहारतः बंगाल के शासक अंग्रेज बन गए। इतना ही नहीं, प्लासी की विजय के फलस्वरूप जो काम प्रारम्भ हुआ था, उसकी पूर्ति भी बक्सर की विजय ने कर दी।

वस्तुत: बक्सर युद्ध के फलस्वरूप भारत में ब्रिटिश शासन की नीव मजबूत हो गयी। इतनी मजबूत की कोई भी शक्ति उसे हिला नहीं सकती थी।

Q.3 1857 के विद्रोह की प्रमुख उपलब्धियों का वर्णन कीजिए। V.VI.
Or 1857 की क्रांति के प्रभाव, परिणाम और महत्व पर प्रकाश डालें।
Ans. 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम चाहे असफल रहा, परन्तु इसकी अनेक उपलब्धियाँ एवं परिणाम बहुत ही महत्वपूर्ण थे। यह विद्रोह व्यर्थ नहीं गया। यह अपनी उपलब्धियों के कारण
ही हमारे इतिहास की महत्वपूर्ण घटनाओं की श्रेणियों में आ सका। इसकी उपलब्धियाँ निम्न थी- 1. हिन्दू-मुस्लिम एकता (Hindu-Muslim unity): इस आन्दोलन एवं संघर्ष के दौरान हिन्दू एवं मुस्लिम न केवल साम्प्रदायिकता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर अपने देश के बारे में एक सामान्य मंच पर आए, बल्कि लड़े और एक साथ ही यातनायें भी सही। अंग्रेजों को यह एकता तनिक भी नही भायी। इसलिए उन्होंने शीघ्र ही अपनी ‘फूट डालो एवं शासन करो’ की नीति को और तेज कर दिया।
2. राष्ट्रीय आंदोलन की पृष्ठभूमि (The background of National Movement) :
राष्ट्रीय आन्दोलन एवं स्वराज्य की प्राप्ति के लिए संघर्ष की पृष्ठभूमि को इस विद्रोह ने तैयार
किया। इसी संग्राम ने देश की पूर्ण स्वतंत्रता के जो बीज बोए उसी का फल 15 अगस्त, 1947 को प्राप्त हुआ।
3. देशभक्ति की भावना का प्रसार (Spread of Patrotic feeligns) : इस संग्राम ने भारतीय जनता के मस्तिष्क पर वीरता, त्याग एवं देशभक्तिपूर्ण संघर्ष की एक ऐसी छाप छोड़ी कि वे अब प्रान्तीय एवं क्षेत्रीयता की संकीर्ण भावनाओं से ऊपर उठकर धीरे-धीरे राष्ट्र के बारे में एक सच्चे नागरिक की तरह सोचने लगे। विद्रोह के नायक सारे देश के लिए प्रेरणा के स्रोत एवं घर-घर में चर्चित होने वाले नायक बन गए। यह इस आन्दोलन की एक महान उपलब्धि थी।
4. देशी राज्यों को राहत (Relief to the Princely States) : देशी राजाओं को अंग्रेजी सरकार ने यह आश्वासन दिया कि भविष्य में उनके राज्यों को ब्रिटिश साम्राज्य का अंग नहीं बनाया जाएगा। उनका अस्तित्व स्वतंत्र रूप से बना रहेगा। इसलिए अधिकांश देशी राजाओं ने ब्रिटिश शासन का समर्थन करना शुरू कर दिया। भारतीय शासकों को दत्तक पुत्र लेने का अधिकार दे दिया गया। इससे अनेक शासकों ने राहत की साँस ली।
5. भारतीयों को सरकारी नौकरियों की घोषणा (Govt. Service to the Indians) : सैद्धांतिक रूप में भारतीय सर्वोच्च पदों पर धीरे-धीरे प्रगति करके जा सकते थे। सरकारी घोषणा की गई थी कि भारतीयों के साथ जाति एवं रंग के आधार पर कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा, लेकिन अंग्रेजो ने अपना वायदा पूरा नहीं किया, जिससे राष्ट्रीय आन्दोलन बराबर बढ़ता गया।
6. धार्मिक हस्तक्षेप समाप्त कर दिया गया (The religious interference ended) : सैद्धांतिक रूप से भारतीय प्रजा को पूर्ण धार्मिक स्वतंत्रता का विश्वास दिलाया गया, लेकिन व्यावहारिक रूप में हिन्दू और मुसलमानों में धार्मिक घृणा एवं साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दिया गया।

Q.4. 1857 की क्रांति की असफलता के क्या कारण थे? [2017]
Ans. 1857 की क्रांति की असफलता के कारण 1857 की क्रांति की असफलता के एक नहीं अनेक कारण थे, जो कि निम्नवत् हैं- 1. योग्य नेतृत्व का अभाव : क्रांति के नेता बहादुरशाह जफर अत्यन्त वृद्ध थे। नाना साहब, रानी लक्ष्मीबाई, बख्तवली, बेगम हजरत महल आदि क्षेत्रीय नेता थे। ताँत्या टोपे ने सभी नेताओं को संगठित करने का प्रयास तो किया मगर तब तक देर हो चुकी थी। दूसरी ओर हैवलाक, कैम्पवेल एवं आउट्रम अत्यन्त योग्य सेनापति थे। भारत में अखिल भारतीय स्तर पर एक योग्य नेता का अभाव था।
2. समय से पूर्व ; विद्रोह की तिथि 31 मई, 1857 तय की गई थी। मगर विद्रोह समय से पूर्व 10 मई को ही आरम्भ हो गया। मेलसन ने लिखा है. यदि विद्रोह निर्धारित योजनानुसार सभी स्थानों पर एक साथ होता तो अंग्रेजों के सामने विकट समस्या आ सकती थी।”
3. देशी राजाओं का अंग्रेजों को सहयोग : राजस्थान, मैसूर, महाराष्ट्र, पूर्वी बंगाल, हैदराबाद, गुजरात आदि में शासको ने विद्रोह को फैलने नहीं दिया। हैदराबाद, ग्वालियर, पटियाला, जींद एवं नेपाल आदि ने विद्रोह के दमन में अंग्रेजों का साथ दिया।
4. विद्रोह के क्षेत्र का सीमित होना : विद्रोह भारत के कुछ भागों तक ही सीमित रहा।
5. गोरखा व सिक्खों द्वारा अंग्रेजों को मदद : इन लोगों ने अंग्रेजों की मदद की।
6. अनेक वर्गों की उदासीनता : कुछ वर्ग इस विद्रोह के प्रति उदासीन रहे। कुछ शिक्षित वर्ग के लोग अंग्रेज शासन को भारत के लिये हितकर मानते थे।
7. सीमित संसाधन विद्रोहियों के पास संसाधनों का अभाव था।
8. अंग्रेजों की अनुकूल परिस्थितियाँ : अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर परिस्थितियों अंग्रेजों के अनुकूल थी।
9. कैनिंग की उदारता : राबर्टसन ने लिखा है कि कैनिंग की उदारता ने विद्रोह को जल्दी समाप्त करने में मदद की। उसने घोषणा की कि बिना जॉब के किसी को दण्ड नहीं दिया जायेगा।अंग्रेजो ने यद्यपि उस पर व्यंग्य कार्टून बनाये एवं उसे ‘दयावान कैनिंग’ की उपाधि तक दी
10. वैचारिक एकता का अभाव : विद्रोह के नेताओं के बीच वैचारिक स्तर पर एकता का अभाव था।

Q.5. सविनय अवज्ञा आन्दोलन पर टिप्पणी लिखें।
Or, गाँधीजी द्वारा चलाये गये सविनय अवज्ञा आंदोलन का वर्णन करें।(2012)
Ans. सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930 ईo में चलाया गया। यह सत्य एवं अहिंसा पर आधारित एक विशाल जन आंदोलन था। इसे पूर्ण स्वराज की प्राप्ति की दिशा में उठाया गया पहला महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है। इस आन्दोलन के कारणों का वर्णन इस प्रकार है-
*1928 ईo में ‘साइमन कमीशन’ भारत आया। इस कमीशन ने भारतीयों के विरोध के बावजूद भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित कर दी। इससे भारतीयों में असंतोष फैल गया। • सरकार ने नेहरू रिपोर्ट की शर्तों को स्वीकार न किया। बारदौली के किसान आंदोलन की सफलता ने गाँधी जी को सरकार के विरुद्ध आंदोलन चलाने के लिए प्रेरित किया। गाँधी जी ने सरकार के सामने कुछ शर्तें रखीं, परन्तु वायसराय ने इन शर्तों को स्वीकार न किया। इन परिस्थितियों में गाँधी जी ने सरकार के विरुद्ध सविनय अवज्ञा आंदोलन आरम्भ कर दिया।

*सविनय अवज्ञा आंदोलन की प्रगति (1930-31) : सविनय अवज्ञा आंदोलन गाँधी जी की डांडी-यात्रा से आरम्भ हुआ। उन्होंने 12 मार्च, 1930 ई० को पैदल यात्रा आरम्भ की और 6 अप्रैल, 1930 को डांडी के निकट समुद्र तट पर पहुँचे। जहाँ उन्होंने समुद्र के पानी से नमक बनाया और नमक कानून भंग किया। वही से यह आंदोलन सारे देश में फैल गया। अनेक स्थानों पर लोगो ने सरकारी कानूनों का उल्लंघन किया। सरकार ने इस आंदोलन को दबाने के लिए दमन चक्र आरम्भ कर दिया। गाँधीजी सहित अनेक आंदोलनकारियों को जेलों में बंद कर दिया गया, परन्तु आंदोलन की गति में कोई अन्तर न आया। इसी बीच गाँधी जी और तत्कालीन वायसराय में एक समझौता हुआ। समझौते के अनुसार गाँधी जी ने दूसरे गोलमेज सम्मेलन में भाग लेना तथा आंदोलन बंद करना स्वीकार कर लिया। इस तरह 1931 ईo में सविनय अवज्ञा आंदोलन कुछ समय के लिए रोक दिया गया।

* सविनय अवज्ञा आन्दोलन का अंत (1934) : 1931 ईo में लंदन में दूसरा गोलमेज सम्मेलन आरम्भ हुआ। इसमें कांग्रेस की ओर से गाँधी जी ने भाग लिया, परन्तु इस सम्मेलन में भी भारतीय प्रशासन के लिए कोई उचित हल न निकल सका। गाँधी जी निराश होकर भारत लौट आये और उन्होंने अपना आंदोलन फिर से आरम्भ कर दिया। सरकार ने आंदोलन के दमन के लिए आंदोलनकारियों पर फिर से अत्याचार करने आरम्भ कर दिये। सरकार के इन अत्याचारों से आंदोलन की गति कुछ धीमी पड़ गयी। कांग्रेस ने 1933 ई० में इस आंदोलन को अधिकारिक रूप में स्थगित कर दिया। मई, 1934 ईo में इसे वापस ले लिया गया।

* सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व: कुछ कमजोरियों के बावजूद सविनय अवज्ञा आंदोलन के महत्वपूर्ण परिणाम निकले विदेशी कपड़े के बहिष्कार के कारण विदेशी कपड़े का आयात लगभग आधा रह गया। शराब की दुकानों के सामने किए गए सत्याग्रह तथा शराबबंदी के प्रचार से सरकार को मिलने वाली आय कम हो गई। भारतीयों को अपने लिए नमक बनाने की अनुमति मिल गई। किसानों, मजदूरों, आदिवासियों तथा महिलाओं में विशेष जागृति उत्पन्न हुई और वे स्वतंत्रता आंदोलन का अभिंन अंग बन गए। – सत्याग्रहियों द्वारा सहन किए गए ब्रिटिश अत्याचारों से लोगों में स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना और भी दृद हो गई। • ब्रिटिश साम्राज्यवाद के पाँव एक बार फिर हिलने लगे।

Bihar Board 10th 12th Geography Top-5 Question 2024

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