Bihar Board 12th Important physics TOP-15 Question answer 2024: महत्वपूर्ण Question answer कक्षा 12th Important physics 2024 BSEBEXAM
Bihar Board 12th Important physics TOP-15 Question answer 2024:
प्रश्न 1. संचार प्रणाली में संचरण के लिए प्रयुक्त तीन विधाओं का उल्लेख कीजिए ।
उत्तर-संचार प्रणाली में संचरण के लिए प्रयुक्त तीन विभिन्न माध्यम (a) भू-तरंग संचरण (Ground Wave Propagation ) तरंग संचरण की इस प्रक्रिया में रेडियो तरंगे पृथ्वी के पृष्ठ के अनुदिश गमन करती हैं। इन तरंगों को भू-तरंगें कहते हैं। इस प्रक्रिया में प्रेषित तथा ग्राही के एण्टीना पृथ्वी के निकट होने चाहिए। पृथ्वी के पृष्ठ की चालकता तथा विद्युत्शीलता के कारण रेडियो तरंगों के संचरण के साथ-साथ इनकी ऊर्जा में कमी आती रहती है। रेडियो तरंगों की आवृत्ति में वृद्धि के साथ-साथ ऊर्जा के मान में कमी अधिक हो जाती है। इसी कारण भूतरंग संचरण 1.5 MHz आवृत्ति से नीचे तक ही सीमित रहता है। अतः इस विधि द्वारा केवल 1.5 MHz से कम आवृत्ति को रेडियो तरंगों का ही संचरण किया जा सकता है। भूतरंग संचरण का प्रयोग अल्प दूरी तक संचरण में ही सीमित है। इस संचारण में विकिरणों के दुर्बल होने का अन्य कारण पृष्ठ तरंगों का विवर्तन भी है। इसके कारण ही पृष्ठ तरंगों के आगे बढ़ने के साथ-साथ झुकाव कोण भी बढ़ता जाता है। कुछ दूरी तय करने पर तरंग नीचे आ जाती है अर्थात् समाप्त हो जाती है
(b) व्योम तरंग संचरण (Sky Wave Propagation)—वे रेडियो तरंगें जो आयन मण्डल से परावर्तित हो जाती हैं, आकाश (व्योम) तरंगें कहलाती है। इस प्रकार के संचरण में रेडियो तरंगों को प्रेषित से जुड़े एण्टीना द्वारा आयन मण्डल की ओर प्रेषित किया जाता है। 2 MHz से 10MHz आवृत्ति परास की रेडियो तरंगों को आयन मण्डल द्वारा पुनः परावर्तित कर दिया जाता है। इस संचारण प्रक्रिया में पृथ्वी की सतह तथा आयन मण्डल से रेडियो तरंगों के क्रमागत परावर्तनों के कारण ही इन तरंगों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक प्रेषित करना सम्भव है। 10 MHz से अधिक आवृत्ति की रेडियो तरंगें आयन मण्डल को पार कर जाती हैं तथा पुनः पृथ्वी पर परावर्तित नहीं होती । अतः इन तरंगों को इस विधि द्वारा संचरित नहीं किया जा सकता ।
(c) अंतरिक्ष तरंग संचरण (Space Wave Propagation) अति उच्च आवृत्ति (VHF), परा उच्च आवृत्ति (UHF) तथा सूक्ष्म तरंगों का संचरण भूतरंगों तथा व्योम तरंगों के द्वारा सम्भव नहीं है, क्योंकि पृथ्वी की सतह पर बहुत कम दूरी तय करने पर ही इस आवृत्ति की तरंगों का लगभग पूर्णतः अवशोषण हो जाता है। इसके साथ-साथ उच्च आवृत्ति को तरंगों के लिए आपन मण्डल द्वारा पारगमन होता है जिससे ये पुनः परावर्तित नहीं की जा सकती ।
प्रश्न 2. एक आँख की तुलना में एक जोड़ी आँख (a pair of eyes) से क्या लाभ है?
उत्तर- (i) दो आँखों द्वारा दूरी का अनुमान ठीक से लगाया जा सकता है। एक आँख बंद कर फाउंटनपेन में स्याही भरना मुश्किल होता है। सिर्फ एक ही आँख से सूई में धागा डालना कठिन होता है। अतः, दोनों आँखों से एक ही साथ देखना दूरी का ठीक से पता लगाने में सहायक होता है।
(ii) वस्तु को त्रिदेशिक स्थिति देखने के लिए दोनों आँखें बहुत महत्वपूर्ण हैं। दाहिनी आँख से किसी वस्तु का दायाँ भाग ठीक से दिखाई पड़ता है और बाई आँख से बाई ओर का भाग ठीक से दिखाई पड़ता है और मस्तिष्क दोनों को मिलाकर वस्तु का पूरा प्रतिबिंब देखता है। इस मिले-जुले प्रभाव से वस्तु की गहराई और ठोसपन का पता चल जाता है।
प्रश्न 3. धारावाही चालक में वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता एवं समविभवी तल को परिभाषित करें ।
उत्तर- वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता-वैद्युत क्षेत्र के किसी बिन्दु पर तीव्रता का मान परिणाम एवं दिशा में उस बिन्दु पर ऋणात्मक विभव प्रवणता के तुल्य होता है। वैद्युत क्षेत्र की तीव्रता का SI मात्रक वोल्टमीटर (Vm ‘) होता है। समविभवी तल—किसी भी विद्युत क्षेत्र में अनेक बिन्दु ऐसे होते हैं। जिनपर विद्युत विभव समान होता है। इस प्रकार के सभी बिन्दुओं से होकर गुजरने वाला तल समविभवी तल कहा जाता है ।
प्रश्न 4. P-टाइप एवं N-टाइप अर्द्धचालक में अंतर स्पष्ट करें ।
उत्तर- P-अर्द्धचालक- जब III A समूह के तत्वों को IV A समूह के तत्व के साथ मिश्रित किया जाता है, तो मिश्रण में छिद्रों की संख्या बहुत अधिक हो जाती है और ये छिद्र धारावाहक के रूप में कार्य करते हैं । इस प्रकार के अर्द्धचालक को P-प्रकार का अर्द्धचालक कहते हैं ।
N-प्रकार के अर्द्धचालक जब VA समूह के तत्व को IVA समूह के तत्व के साथ मिलाया जाता है, तो इलेक्ट्रॉन की अधिकता हो जाती है और तब धारावाहक का कार्य इलेक्ट्रॉन करता है। इस प्रकार के अर्द्धचालक को N- प्रकार का अर्द्धचालक कहते हैं ।
प्रश्न 5. खतरे का चिह्न हमेशा लाल लिया जाता है, क्यों?
उत्तर-रैले नामक एक वैज्ञानिक ने यह प्रतिपादित किया कि सूर्य की किरणों में सभी वर्तमान तरंगदैर्घ्य के प्रकाश का प्रकीर्णन (scattering) होता है तथा प्रकीर्णित प्रकाश की तीव्रता, प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के चतुर्थ घात के – व्युत्क्रमानुपाती होती है। लाल वर्ण के प्रकाश का प्रकीर्णन कम होता है और इसके कम प्रकीर्णन के कारण यह काफी दूर से ही दिखाई देता है। यही कारण है कि खतरे का चिह्न हमेशा लाल ही लिया जाता है।
प्रश्न 6. प्राथमिक और द्वितीयक इंद्रधनुष (rainbow) में अंतर स्पष्ट करें।
उत्तर- जब सूर्य का श्वेत प्रकाश वर्षा के समय वर्षा की पर पड़ता है तो कभी-कभी, हमें पीठ सूर्य की ओर रखने पर सात रंगोंवाली केंद्री दिखाई पड़ती हैं। इन रंगीन चापों को इंद्रधनुष कहते हैं। बहुधा दो इंद्रधनुष एक साथ दिखाई पड़ते हैं, जो एक-दूसरे के ऊपर रहते हैं। अंदरवाले इंद्रधनुष को प्राथमिक इंद्रधनुष तथा बाहरवाले को द्वितीयक इंद्रधनुष कहते हैं। दोनों ही प्रकार के इंद्रधनुष प्रकाश के वर्ण-विक्षेपण (dispersion) के कारण दिखाई देते हैं।
प्राथमिक इंद्रधनुष सूर्य के प्रकाश के उन किरणों द्वारा दिखाई देता है जिनका वर्षा की बूँदों के अंदर दो बार अपवर्तन और एक बार आंतरिक परावर्तन के बाद न्यूनतम विचलन होता है।
द्वितीयक इंद्रधनुष सूर्य के प्रकाश के उन किरणों से दिखाई देता है जिनका वर्षा की बूँदों में दो बार अपवर्तन तथा दो बार आंतरिक परावर्तन के बाद न्यूनतम विचलन होता है।
द्वितीयक इंद्रधनुष की अपेक्षा प्राथमिक इंद्रधनुष अधिक चमकीला और छोटा होता है। प्राथमिक इंद्रधनुष का भीतरी कोर बैंगनी (violet) और बाहरी कोर लाल (red) होता है। इसके ठीक विपरीत द्वितीयक इंद्रधनुष में होता है, अर्थात् इसका भीतरी कोर लाल और बाहरी कोर बैंगनी होता है। चूँकि द्वितीयक इंद्रधनुष बनानेवाली किरणों की तीव्रता दो बार आंतरिक परावर्तन के कारण कम हो जाती है, इसीलिए यह इंद्रधनुष प्राथमिक इंद्रधनुष की तुलना में कम चमकीला होता है।
प्रश्न 7. विद्युत चुम्बकीय प्रेरण के सैंज नियम लिखें।
उत्तर-लेंज के नियम से विद्युत चुंबकीय प्रेरण की घटना में प्रेरित विद्युत चाहक बल तथा प्रेरित धारा की दिशा से ज्ञात की जाती है। इस नियम के अनुसार, “विद्युत् चुंबकीय प्रेरण के कारण सभी अवस्थाओं में किसी परिपथ में प्रेरित धारा की दिशा इस प्रकार की होती है कि वह उस कारण का ही विरोध करती हैं जिसके कारण प्रेरित धारा स्वयं उत्पन्न होती है ।
प्रश्न 8. क्रान्तिक कोण को परिभाषित करें तथा इसकी शर्तों लिखें।
उत्तर-क्रांतिक कोण—जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम से विरल माध्यम में जाती है तब सघन माध्यम में किरण का वह आपतन कोण जिसके अनुरूप विरल माध्यम में अपरिवर्तित किरण का अपवर्तन कोण 90° हो तो वह क्रांतिक कोण कहलाता है। इसकी शर्तें—जब प्रकाश की किरण सघन माध्यम में से विरल माध्यम गमन करता है तब क्रांतिक कोण का मान आपतन कोण के मान से कम होता है।
प्रश्न 9. ट्रांसफॉर्मर का क्रोड परतदार क्यों होता है ?
उत्तर-ट्रांसफॉर्मर का क्रोड परतदार होता है क्योंकि क्रोड में लौह-क्षय होता है। भँवर धाराओं के प्रेरित होने से ट्रांसफॉर्मर के कोड में विद्युत शक्ति की हानि होती है। जिसे लौह-क्षय कहा जाता है। क्रोड को परतदार होने से लौह-क्षय का मान कम हो जाता है। इसलिए क्रोड परतदार होता है।
प्रश्न 10. विद्युत आवेश के दो मौलिक गुणों को लिखें ।
उत्तर- विद्युत आवेश के दो मौलिक गुण-
(i) विद्युत आवेश अदिश राशि है ।
(ii) विद्युत आवेश हमेशा संरक्षित होता है ।
प्रश्न 11. लेजर किरणों के किन्हीं चार मुख्य विशेषताओं को बताइए ।
उत्तर- लेजर किरणों के चार मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं- (i) प्रत्येक लेजर का विकिरण अत्यधिक तीक्ष्ण एवं दैशिक होता है।
(ii) प्रत्येक लेजर में एक ऐक्टिव पदार्थ का उपयोग होता है जो ऊर्जा को प्रकाश ऊर्जा में बदल देता है।
(iii) प्रत्येक लेजर में एक पम्पिंग स्रोत होता है जो ऊर्जा को पावर देता है।
(iv) प्रत्येक लेजर अम्पलीफाई होनेवाले प्रकाश बीमा को ऐक्टिम मैटेरियल से होकर भेजते हैं।
प्रश्न 12. पतली झिल्ली (thin film) जैसे साबुन के बुलबुले अथवा पानी पर तेल की पतली परत को श्वेत प्रकाश से प्रकाशित करने पर सुंदर रंग दिखाई पड़ते हैं। इसकी व्याख्या करें।
उत्तर- साबुन के बुलबुले अथवा पानी पर तैरती तेल की पतली परत से श्वेत प्रकाश के परावर्तन के क्रम में विभिन्न रंगों (वर्णों) का दिखाई पड़ना प्रकाश के व्यतिकरण’ के कारण होता है। इन फिल्मों के विपरीत पृष्ठों से प्रकाश तरंगों के परावर्तन के कारण पथांतर उत्पन्न होता है। श्वेत प्रकाश के जिस तरंगदैर्य के लिए संपोषी व्यतिकरण की शर्त मान्य होती है उसी तरंगदै का प्रकाश (अर्थात् वर्ण) दिखाई पड़ता है। इस प्रकार विभिन्न वर्गों के तरंगदैर्घ्य रचनात्मक व्यतिकरण उत्पन्न करते हैं और वे सामान्यतः रंगीन (सुंदर रंगों में) दिखाई पड़ते हैं
प्रश्न 13. एनालॉग तथा डिजिटल सिग्नल से आप क्या समझते हैं।
उत्तर- एनालॉग सिग्नल-ऐसा current या voltage सिग्नल जो सतत् तथा समय के साथ परिवर्तनशील हो analog signal कहा जाता है। ऐसा signal प्रस्तुत करने वाले परिपथ को analog electronic circuit कहा जाता है।
डिजिटल सिग्नल- ऐसे signal जिनके दो level of current or voltage (0 and 1) को digital signal कहा जाता है। इस इलेक्ट्रॉनिक परिपथ में जिससे धारा तथा वोल्टेज के दो ही signals (on या off) होता है, इस परिपथ द्विआधारी संख्याओं के प्रयोग से सम्पन्न होता है। 0 या 5V को क्रमश: 0 तथा 1 से सूचित किया जाता है। अतः इस परिपथ में input या output में दो ही मान संभव हैं या तो 0 या 1.
प्रश्न 14. विक्षेषण (dispersion) एवं विवर्तन (diffraction) में भेद बताइए।
उत्तर- जब श्वेत प्रकाश की किरण किसी प्रिज्म से होकर गुजरती है, तो वह अपने अवयवी वर्णों में विभक्त हो जाती है। इस घटना को प्रकाश का विक्षेपण (या वर्ण-विक्षेषण) कहते हैं। यदि किसी प्रकाश स्रोत और पर्दे के बीच एक अपारदर्शी अवरोध रख दिया आए तो पर्दे पर पर्याप्त स्पष्ट छाया प्राप्त होती है। यदि अवरोध का आकार काफी छोटा हो, तो प्रकाश का संचरण सीधी रेखा में प्रतीत नहीं होता। उन स्थानों पर भी प्रकाश दिखाई पड़ता है जहाँ पूर्णरूप से अंधकार होना चाहिए था। अतः, अवरोध के किनारों पर प्रकाश के मुड़ने की तथा ज्यामितीय छाया में प्रकाश के अतिक्रमण की घटना को प्रकाश का विवर्तन कहते हैं। प्रश्न 20. बिन्दु 1 तथा B के बीच समतुल्य धारिता ज्ञात करें :
प्रश्न 15. संचार के साधनों का संक्षिप्त परिचय दें ।
उत्तर- सूचना प्रौद्योगिकी के विकास में संचार साधनों की भूमिका महत्त्वपूर्ण है । आज अर्द्धचालक इलेक्ट्रॉनिक युक्तियों, संचार उपग्रहों एवं कम्प्यूटर नेटवर्क ने संचार माध्यम को इतना प्रभावी कर दिया कि विश्व के किसी भी स्थान में घटने वाली घटनाओं की क्षण-प्रतिक्षण जानकारी घर बैठे प्राप्त की जा रही है। संचार तंत्र को सामान्यतः तीन भागों में बाँटा गया है :
(i) प्रेषण, (ii) संचरण तथा (iii) अधिग्रहण ।
प्रेषित से ग्राही में मध्य रेडियो तथा माइक्रो (सूक्ष्म) तरंगों के संचरण तथा प्रकाशीय तन्तुओं द्वारा प्रकाश का संचरण होता है। इसमें आयनमण्डल की भूमिका भी महत्वपूर्ण है ।
संचार साधनों जैसे—टेलीफोन, रेडियो, टेलीविजन, कम्प्यूटर नेटवर्क आदि द्वारा मुख्यतः ध्वनि, संगीत, भाषण तथा दृश्य प्रसारण किया जाता है । रेडियो तरंगों द्वारा उसके सफलतापूर्वक प्रसारण हेतु मॉडुलन तथा संसूचन अभिक्रियाएँ की जाती है। मॉडुलन में निम्न आवृत्ति की श्रव्य तरंगों को उच्च आवृत्ति की वाहक या रेडियो तरंगों के साथ मिश्रित कर उच्च आवृत्ति की परिणामी तरंग केन्द्र पर किया जाता है। संसूचन में मॉडुलित तरंगों में से श्रव्य तरंगों को ग्राही केन्द्र के वाहक तरंगों से अलग किया जाता है ।
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Bihar Board 12th Important physics TOP-15 Question answer 2024