12th Important Question Answer Hindi 2024: Important प्रश्न उत्तर, हिंदी, यही प्रश्न आएगा 2024 में, सभी स्टूडेंट देखे ले, BSEB EXAM

12th Important Question Answer Hindi 2024

12th Important Question Answer Hindi 2024: Important प्रश्न उत्तर, हिंदी, यही प्रश्न आएगा 2024 में, सभी स्टूडेंट देखे ले, BSEB EXAM

12th Important Question Answer Hindi 2024:

प्रश्न 1. ‘पंच की जुबान से ख़ुदा बोलता है’, पंच परमेश्वर के आधार पर निरूपित करें। [20165, 20135]

या, ‘पंच परमेश्वर’ कहानी का सारांश लिखिए।
[2009 (A+S), 2011 A, 2012 S, 2013 S, 2018 (S+A))

या, “क्या विगाड़ के डर से इन्सान की बात न कहोगे ?” पंच परमेश्वर कहानी के आधार पर सिद्ध करें।

उत्तर: ‘पंच परमेश्वर’ शीर्षक कहानी प्रेमचन्द की सर्वश्रेष्ठ कहानियों में से एक है। इस कहानी में प्रेमचंद जी ने यह दिखलाया है कि उत्तरदायित्व आ जाने से मनुष्य अपनी व्यक्तिगत परिधियों से ऊपर उठ जाता है। प्रस्तुत कहानी में हम प्रेमचन्द जी के आदर्शोन्मुख यथार्थवाद की सफल अभिव्यक्ति पाते है। इसमें लेखक का उद्देश्य यह दिखलाना है कि जब न्याय करने के लिए किसी व्यक्ति को पंच मनोनीत किया जाता है, तो वह व्यक्ति अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को भूल जाता है और उसकी वाणी में ईश्वर का वास होता है। कहानीकार ने इसी तथ्य को दर्शन के लिए ‘पंच परमेश्वर’ शीर्षक मनोरंजक कहानी की रचना की है।

कहानी का मूल उद्देश्य इस तथ्य का प्रतिपादन करना है कि पंच में परमेश्वर का वास होता है और पंच की वाणी परमेश्वर की वाणी होती है। कहानी में जुम्मन शेख और अलगू चौधरी, जो एक-दूसरे के मित्र है, एक-दूसरे के अलग-अलग झगड़े में पंचायत करने के लिए चुने जाते है।

दोनों पारस्परिक मित्रता का नाता भूलकर वहीं फैसला करते है जो न्यायपूर्ण होता है। जुम्मन का मित्र होकर अलग फैसला उसके विरुद्ध करता है क्योंकि जुम्मन उसकी नजर में दोषी है और इसी तरह जुम्मन, जो अलग से बदला लेने की भावना से उत्तेजित है, पंच के आसन पर आकर उसके विरुद्ध फैसला नहीं कर पाता क्योंकि अलग निर्दोष है। इस तरह प्रेमचन्द ने यह सिद्ध करने का प्रयास किया है कि पंच का आसन परमेश्वर का आसन होता है। इस आसन पर बैठकर कोई धर्म-विरुद्ध बात नहीं बोल पाता। इस प्रकार न्याय- पालन के रूप में पंच के पद को परमेश्वर के पदस्वरूप दर्शाने वाली इस कहानी का शीर्षक ‘पेन परमेश्वर’ रखा जाना युक्तिसंगत और सार्थक है।

प्रेमचन्द की कहानी ‘पंच परमेश्वर’ को पढ़ने से पंच पद के प्रति आस्था और विश्वास के भाव प्रकट होते है। मन में यह विचार आता है कि पंच का पद बड़े उत्तरदायित्व का पद होता है। पंच बन जाने पर हमें धर्म और न्याय की पूरी ईमानदारी से रक्षा करनी चाहिए। पंच पद पर आसीन होकर गलत और अनुचित बात बोलना धर्म-विरुद्ध है क्योंकि निष्पक्ष और पूर्वाग्रहमुक्त होकर फैसला करना ही पंच का धर्म और कर्म है।

जब तक खालाजान ने अपनी जायदाद जुम्मन के नाम दर्ज नहीं करायी थी, तबतक जुम्मन उनकी खूब आवभगत करते रहे। परन्तु जब खालाजान अपनी सम्पत्ति उनके नाम लिख चुकी, तब जुम्मन और उसकी पत्नी खालाजान के साथ दुर्व्यवहार करने लगे। अब खालाजान को फाकेकशी तक की नौबत आ गयी। ऊपर से डॉट-फटकार भी मिलने लगी। खालाजान के लिए यह सब सहना मुश्किल हो गया। ऊबकर उन्होंने पंचायत बुलाई ताकि उनके साथ न्याय हो सके। बुढ़िया यह जानती थी कि अलगू जुम्मन का परम मित्र है, पर उसके मन में यह विश्वास भी अवश्य था कि पंच के पद पर से अलगू गलत बात नहीं बोल सकेगा, बिगाड़ के डर से ईमान की बात करने में नहीं चूकेगा। अतः पंच पद की गरिमा को समझते हुए उसने सरल मन से फैसले का भार अलगू को ही सौप दिया। जुम्मन शेख, अलगू द्वारा दिये गये फैसले को सुनकर अवाक् रह गया। उसे कतई विश्वास न था कि अलगू उसके विपक्ष में फैसला करेगा। उसे अलग से यह उम्मीद थी कि मित्र होने के नाते अलगू उसका पक्ष लेगा, पर उसकी आशा पूरी नही हुई। वह अलगू के प्रति प्रतिशोध भाव से अभिभूत हो उठा।

यद्यपि जुम्मन शेख को अलगू चौधरी से बदला लेने का मौका मिला, फिर भी जुम्मन शेख ऐसा नहीं कर सका। सरपंच के पद पर आसीन होते ही उसका धर्म-ज्ञान जाग उठा। उसने पंच-पद के उत्तरदायित्व का ज्ञान हो आया। पंच पद पर बैठते ही अलगू के प्रति उसका पुराना प्रतिशोध भाव ठंडा पड़ गया। अतः उसने सच्चाई के पक्ष में फैसला किया।

प्रेमचन्द जी को मानव प्रकृति की सद्वृत्तियों पर दृढ़ विश्वास है। इस कहानी में कहानीकार की यह शिक्षा है कि मनुष्य मूलतः अच्छा होता है। परिस्थितियों के कारण मनुष्य कुवृत्तियों के फेर में पड़ जाता है। किन्तु ज्यों ही परिस्थितियाँ अनुकूल होती है त्यो ही उसकी आँखों पर का आवरण हट जाता है और वह अपनी मूल प्रकृति के अनुसार अच्छे आचरण करने लगता है। प्रेमचन्द जी का विश्वास सुधारवाद में है। इस कहानी में कहानीकार ने यही बताया है कि अनुकूल परिस्थितियों आने पर मनुष्य का हृदय परिवर्तन हो जाता है और वह अपनी कुवृत्तियों का त्याग करके सदवृत्तियों की ओर अग्रसर होता है। इस कहानी में प्रेमचन्द ने आशा और विश्वास का भी सन्देश दिया है। यदि मनुष्य में बुराई आ गयी है, यदि प्रमीण जीवन दूषित हो गया है तो निराशा होने का कोई कारण नहीं है, प्रयास करने पर ग्रामीण जीवन को फिर सुखी बनाया जा सकता है और हृदय परिवर्तन के द्वारा मनुष्य के समस्त दोषों को दूर करना सम्भव है।

प्रश्न 2. अलगू चौधरी का चरित्र-चित्रण करें।

उत्तर- अलगू चौधरी एक सम्पन्न किसान है। शिक्षा उसके पास नहीं, धन है। सामान्य किसानों से उसकी स्थिति अच्छी है। वह अपने दोस्त जुम्मन की तरह स्वार्थी एवं लोभी तो नहीं, पर आदमी है वह व्यावहारिक। वह देवता नहीं है। उसमें साधारण आदमी की कमजोरियाँ भी है। वह जानता है कि जुम्मन गाँव का एक शिक्षित व्यक्ति है। गाँव में आये दिन मामले मुकदमे होते रहते है। अतः जुम्मन की मित्रता उसके लिए लाभदायक है। जुम्मन के साथ उसकी मित्रता व्यावहारिकता के इस आधार पर ही है। जुम्मन और मौसी के बीच झगड़ा होने पर अलग उसपर पूर्णतया व्यावहारिक व्यक्ति के दृष्टिकोण से विचार करता है। वह सोचता है, बूढ़ी मौसी का पक्ष न्याय का है पर जुम्मन का विरोध करना उसके लिए लाभदायक नहीं। ऐसा सोचकर वह झगड़े से अलग रहना चाहता है। उसके अन्दर नैतिक भाव वर्तमान है। मौसी की ललकार सुनकर वह जाग पड़ता है और पंचायत में शामिल होता है। फिर भी उसका स्वार्थ तथा उसकी व्यावहारिकता उससे कहती है कि निष्पक्ष रहने में ही उसका फायदा है, पर मौसी उसे पंच बना देती है तो असमंजस में पड़ जाता है। एक ओर उसका स्वार्थ है, दूसरी ओर सत्य और न्याय। अन्त में, वह न्याय का पक्ष लेकर अपना फैसला जुम्मन के विपक्ष में देता है। स्वार्थ की हानि समझकर भी अलगू न्याय का पक्ष लेता है।

गाँवो में पंचायतें आज भी बैठती है, पर अलगू जैसे पंच का अभाव है। कारण, गाँवों में राजनीति की गन्दी हवा वह गयी है, लोग जाति और गुटों में बंट गये है और छल-प्रपंच का बोलबाला हो गया है। इसलिए पंचायत में अब न्याय नहीं मिलता है। अलगू में स्वार्थ की काया है पर यह उतनी प्रबल नहीं जो उत्तरदायित्व पर विजय प्राप्त करे और न यह इतनी सबल है कि उसकी धर्मबुद्धि पर आघात करे। पर आज के पंचायतों की धर्मबुद्धि ही नष्ट हो गयी है, इसलिए उससे न्याय की आशा नहीं की जा सकती।

प्रश्न 3. महादेवी वर्मा रचित ‘गौरा’ शीर्षक रेखाचित्र का सारांश प्रस्तुत कीजिए। [2009 S, 2010 A, 2011 S, 2012 A, 2013A, 2015A, 2016A, 2018 S]

उत्तर- प्रस्तुत रेखाचित्र में लेखिका ने अपनी छोटी बहन से प्राप्त गाय (गौरा) का विलक्षण वर्णन किया है। साथ ही गौरा की निर्मम मृत्यु के परिपेक्ष्य में मानव की स्वार्थ लिप्सा का रहस्योद्घाटन किया है। अपने स्वार्थ के वशीभूत लेखिका के यहाँ दूध देनेवाले ने गौरा को सूई खिला दी। गौरा की यातनापूर्ण मृत्यु वास्तव में मानवीय संवेदनशीलता की मृत्यु है।

‘गौरा’ लेखिका महादेवी वर्मा को अपनी छोटी बहन के द्वारा स्नेह और दुलार से पालकर भेंट की गयी एक गाय है जो लेखिका के यहाँ आकर विशिष्ट पहचान रखती है और वह इसलिए नहीं कि वह केवल देखने में प्रियदर्शनी है अपितु वह लेखिका के यहाँ आकर सबसे हिल-मिल गयी है। यहाँ तक की उसकी विशालता को देखते हुए भी अन्य पशु-पक्षी अपनी लघुता से अन्तर करना जैसे भूल गये है। यह स्थिति वहाँ के कुत्ते-बिल्लियाँ के साथ भी है जो उसके पेट के नीचे और पैरों के बीच में प्राय: खेलते रहते है, जिनका सम्पर्क-सुख पाकर वह अपनी आँखे मूंदे खड़ी रहती है।

वह जब लेखिका के यहाँ आयी तब उसे देखकर उनके परिचितों और परिचारकों की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था। उसे लाल-सफेद गुलाबों की माला पहनाकर उसके माथे पर केशर-रोली का टीका लगाया गया। तत्पश्चात् घी का चौमुखा दिया जलाकर उसकी आरती उतारते हुए उसे दही-पेड़ा खिलाकर उसका नाम गौरा रख दिया गया तबसे वह गौरांगिनी अपने इसी गौरा नाम से लेखिका के यहाँ सम्बोधित की जाने लगी।

सचमुच गौरा प्रियदर्शनी थी। उसकी कागजी बिल्लोड़ी आँखों का सौन्दर्य देखनेवालों को अपनी ओर विशेष रूप से आकर्षित करनेवाला था। उसके नेत्र हिरण के नेत्रों जैसे चकित विस्मय नहीं, आत्मविश्वास से भरे दिखायी देते थे, किन्तु उसकी अलग मंथर गति का एक अलग ही सौन्दर्य था

लेखिका के यहाँ रहते-रहते गौरा धीरे-धीरे सबको इस तरह पहचान गयी थी कि पैर की आहट से ही वह सबको पहचानने लगी थी। फाटक में मोटर के प्रवेश करते ही बाँ-वाँ की ध्वनि करती हुई यह लेखिका को पुकारने लगती थी। यहाँ तक कि उसे चाय, नाश्ता और भोजन के समय का भी पता चल गया है। जरा भी विलम्ब होता तो वह रम्भाने लगती। वह अपने पास खड़े व्यक्ति के आगे अपनी गर्दन सहलाने के लिए बढ़ा देती फिर अपनी आँखें मूंद लेती।

गौरा ने एक वर्ष बाद एक बछड़े को जन्म दिया जिसका नाम लालमणि रखा गया। अब तो लेखिका के यहाँ दुग्ध महोत्सव ही आरम्भ हो गया। सुबह-शाम वह लगभग बारह सेर दूध देने लगी थी। लालमणि के लिए कई सेर छोड़कर जो दूध होता उससे आस-पास के बाल गोपाल से लेकर कुत्ते-बिल्ली सभी तृप्त होते। जब दुग्ध-दोहन किया जाता तब कुत्ते-बिल्ली सभी पंक्ति में बैठे दिखायी देते और तब तक वे प्रतीक्षा करते जब तक कि सबके पात्रों में दूध डाल नहीं दिया जाता। दूध पी लेने के बाद वे गौरा के चारों ओर उछलते-कूदते हुए अपनी कृतज्ञता का ज्ञापन करते। गौरा भी इतनी अभ्यस्त हो गयी थी कि विलम्ब होने पर वह रम्भाने लगती थी। जब गौरा के दुग्ध-दोहन की समस्या खड़ी हुई तब उसके लिए उस ग्वाले को ही नियुक्त कर लिया गया जो पूर्व में दूध दे जाता था।

किन्तु गौरा के दुग्ध दोहन की समस्या खड़ी हुई तब उसके लिए उस ग्वाले को ही नियुक्त कर लियागया जो पूर्व में दूध दे जाता था।

किन्तु गौरा ने दो-तीन महीने बाद दाना चारा खाना ही बन्द कर दिया, परिणामस्वरूप वह लगातार कमजोर होती चली गयी। चिकित्सकों के द्वारा उसे दिखलाया भी गया। एक्सरे से यह पता चला कि उसे सूई खिला दी गयी है जिस कारण उसका रक्त संचार रूकने की स्थिति में पहुँच गया है।

आखिरकार एक दिन ब्रह्म मुहूर्त में चार बजे गौरा का मुख पत्थर की तरह भारी हो गया। गंगा में समर्पित करने के लिए उसके पार्थिव अवशेष को ले जाते समय कैसे करुणा का समुद्र उमड़ आया।

प्रश्न 4. ‘गौरा’ का चरित्र-चित्रण कीजिए। या, ‘आह मेरा गोपालक देश !’

उत्तर- लेखिका को उसकी छोटी बहन ने भेंट स्वरूप पालने के लिए एक गाय दी थी जिसका नाम रखा गया—गौरा (या गौरांगिनी) जो अपने नाम के अनुरूप प्रियदर्शिनी थी। जब गौरा माँ बनी तब उसके बछड़े का नाम लालमणि रखा गया। माँ बनने के साथ गौरा लालमणि के लिए कई सेर दूध छोड़ देने के बाद भी सुबह-शाम लगभग बारह सेर दूध देती थी। पूर्व में लेखिका के घर में दूध देनेवाले ग्वाले को दुग्ध-दोहन के लिए नियुक्त कर लिया गया। किन्तु अपने स्वार्थ में अन्धे होकर उस ग्वाले ने गौरा को सूई खिला दी। परिणामस्वरूप गौरा काफी दुर्बल और शिथिल होने लगी। जब सूई खिलाये जाने की बात ग्वाले को मालूम हुई तब उसने आना ही छोड़ दिया। ऐसे में उसके प्रति संदेह होना स्वाभाविक था। चिकित्सकों द्वारा गाय के उपचार के लिए प्रयास चलते रहे पर गाय का रोग असाध्य था। आखिरकार एक दिन सूई ने गौरा के हृदय को बेचकर उसकी जान ले ली। उसके पार्थिव अवशेष को गंगा में समर्पित करने के लिए लेखिका ने दीर्घ-निःश्वास छोड़ा। उसके अनुसार ‘यदि दीर्घ-नि:श्वास का शब्दों में अनुवाद हो सके, तो उसकी प्रतिध्वनि कहेगी ‘आह मेरा गोपालक देश !’ वस्तुतः यह यातनापूर्ण मृत्यु गौरा की नहीं हुई अपितु मानवीय संवेदनशीलता की हुई।

प्रश्न 5. रामवृक्ष बेनीपुरी के ‘मंगर’ शीर्षक शब्द-चित्र का सारांश प्रस्तुत करें। (2009 A, 2010 S, 2011 A, 2012S, 20135,2015AJ

उत्तर : रामवृक्ष बेनीपुरी जन-मानस के कलाकार थे। उनका विश्वास था कि भारत का जीवन गाँवों में बसता है। अगर साहित्य जीवन का चित्रण है तो उसमें सम्पूर्ण जीवन का निर उपस्थित होना चाहिए। अब तक के कलाकार केवल महलों की ओर देखते आये थे बेनीपुरी जी ने झोपड़ियों की ओर भी ध्यान दिया। अबतक जिन पात्रों की अवहेलना की गयी थी बेनीपुरी जी ने उनका उद्धार किया। ऐसे पात्रों में ‘मंगर’ भी एक है। वह एक साधारण हलवाहा है। उसे कौन जानता है? पर क्या हलवाहा एक आदमी नहीं है? उसके जीवन में रंगीनी है, सपने हैं, चढ़ाव उतार है, आशा-निराशा है, हर्ष-विषाद है, व्यथा है, बेकली है, त्याग है, तपस्या है, संवेदना है। साहित्य इन भावों की अवहेलना कैसे कर सकता है।

‘मंगर’ के बहाने लेखक ने उस श्रेणी के सभी मजदूरों का विश्न किया है। ऐसे मजदूरी के जीवन में अभाव रहता है। वे इतने दरिद्र है कि उनकी कमर में धोती भी नहीं रहती। जीवन भर भगवा ही पहनकर रह जाते हैं। ऐसे दरिद्र जब बीमार पड़ते हैं तो उनके लिए दवा का भी प्रबन्ध नहीं होता है। बेचारे जीवन का भार ढोये जाते हैं।

मंगर एक देहाती हलवाहा है। उसका चित्रण भी बेनीपुरीजी ने बड़े ही स्वाभाविक वातावरण में किया है। अपनी अभिव्यक्ति के लिए लेखक ने देहाती शब्दों को भी लिया है। कुल मिलाक मंगर कहानी में कहानीकार को अच्छी सफलता मिली है।

मंगर बेनीपुरी जी का हलवाहा था। वह कमर में वस्त्र के नाम पर केवल भगवा भर पहनता था। वह अपने काम में बड़ा दक्ष था। लेखक के बाबा और चाचा उसे बहुत मानते थे। मंगर था अभाव प्रस्त पर उसमें स्वाभिमान कूट-कूट कर भरा था। क्या मजाल की कोई उसे खरी-खोटी सुना दे। मंगर अपने काम में डटा रहता, इसलिए उसे अन्य मजदूरों से विशेष और अच्छी रोजी मिलती। वह लेखक को बहुत मानता था। कई बार लेखक उसके कन्धे पर चढ़ा था। वह बाहर से

तो बेलौस मालूम पड़ता था, पर भीतर से बहुत कोमल एवं भावप्रवण था।

पर्व त्योहार के अवसर पर मंगर के प्रति विशेष सहानुभूति दिखायी जाती थी। कभी-कभी उसे धोती भी मिलती। वह पहनता ! पर भगवा पहनने के बाद भी वह सुन्दर लगता था। उसके शरीर का गठन बड़ा ही सुव्यवस्थित और सुन्दर था। अतः लेखक को वह उसी रूप में अच्छा लगता था।

एक बार मंगर के सिर में दर्द हुआ। उसकी स्त्री भकोलिया जो कि एक आदर्श पत्नी थी. कहीं से दालचीनी ले आयी और उसके सर पर उसका लेप लगा दिया। सर दर्द तो जाता रहा, पर साथ ही उनकी एक आँख भी जाती रही।

एक बार जाड़े के महीने में लेखक अपने गाँव गया। वह आराम से सोया था। जागने पर उसने एक आदमी को लड़खड़ाकर चलते देखा। वह ठीक से नहीं पहचान सका कि वह कौन है। बाद में मालूम हुआ कि वह तो मंगर है। वह एकदम जर्जर हो गया था। उसे देखकर लेखक के हृदय में करुणा उमड़ आयी।

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12th Important Question Answer Hindi 2024

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